कत्यूर महोत्सव का शुभारंभ

बागेश्वर। बागेश्वर जिले के बैजनाथ भकुनखोला मैदान में आज से तीन दिवसीय कत्यूर महोत्सव का शुभारंभ हो गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस महोत्सव का वर्चुअल रूप से उद्घाटन किया। इससे पूर्व, विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं एवं महिला मंगल दल की महिलाओं द्वारा गरुड़ से बैजनाथ तक भव्य सांस्कृतिक झांकी निकाली गई। महोत्सव में विभिन्न विभागों द्वारा अपने-अपने स्टॉल लगाकर जनसामान्य को उपयोगी जानकारियाँ प्रदान की गईं। स्कूली बच्चों द्वारा वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किए गए। इस अवसर पर स्वीप टीम द्वारा मतदाता जागरूकता कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें जिलाधिकारी एवं जिला निर्वाचन अधिकारी आशीष भटगांई ने उपस्थित सभी लोगों को मतदाता जागरूकता की शपथ दिलाई।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कत्यूर महोत्सव को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा कि बैजनाथ की यह ऐतिहासिक भूमि सातवीं सदी में कत्यूर राजवंश की राजधानी रही है। कत्यूरी शासक अपनी समृद्ध कला, गौरवशाली संस्कृति, धार्मिक आस्था एवं न्यायप्रिय शासन प्रणाली के लिए विख्यात थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि कत्यूर महोत्सव के माध्यम से इस ऐतिहासिक क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को व्यापक पहचान दिलाने का सराहनीय प्रयास हो रहा है। मुख्यमंत्री ने गरुड़ क्षेत्र के विकास हेतु गरुड़ में नगरीय पेयजल योजना को स्वीकृति, इंटर कॉलेज गागरीगोल में विज्ञान वर्ग की मान्यता, चक्रवर्तेश्वर मंदिर में घाट, सभाकक्ष निर्माण एवं सौंदर्यीकरण, के.डी. पांडेय रामलीला मैदान में टिनशेड का निर्माण आदि की घोषणा की। उन्होंने कत्यूर महोत्सव के आयोजन के लिए दो लाख की धनराशि देने की भी घोषणा की। महोत्सव का विधिवत उद्घाटन केंद्रीय सड़क परिवहन अजय टम्टा ने किया। इस मौके पर केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा ने कहा कि, कत्यूरी शासकों ने यहाँ प्राचीन बैजनाथ मंदिर का निर्माण कराया, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में आस्था का प्रमुख केंद्र है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन हमारी ऐतिहासिक विरासत को भावी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि कत्यूर क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है।
इस मौके पर जिलाधिकारी आशीष भटगांई ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने और संस्कृति को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों से न केवल सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण होता है, बल्कि सामाजिक समरसता और पारस्परिक समझ को भी बल मिलता है।